मेरा गुरु मेरी आत्मा है।
जीवन की सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त करने के लिए गुरु का आश्रय प्राप्त करना सत्य जीवन का श्रेष्ठ संधान है। बाह्य रूप से किसी स्वरुप के प्रति साक्षीभाव रखकर विचार शक्ति की प्रबुद्ध सत्ता को स्वीकार करना आत्मबोध के उपरांत ही संभव है। क्यों की सत्यस्वरूप का ज्ञान बाह्य तत्वों से उपलब्ध नहीं होता यह स्वतः मूल आत्म तत्व से प्रकट होता है।
निश्चित रूप से गुरु की सत्य दीक्षा अंतःकरण से अर्थात परमपिता परमात्मा के द्वारा परिष्कृत दिव्य बिन्दुओं से ही उत्पन्न होगी। यह बाह्य श्रृष्टि से उपलब्ध होती हो ऐसा यथार्थ स्पष्ट नहीं होता।
गुरु साक्षीभाव से किसी को दीक्षित करते है। वो केवल साक्षी होते हैं मूलरूप से सत्य-सात्विक संस्कारों की दीक्षा तो स्वयं परमात्मा द्वारा ही संभव है। क्यों की अनित्य अज्ञान को तो नित्य आत्म ज्ञान ही दूर कर सकता है।
श्रद्धेय श्री कल्याण मित्र पावन महाराज जी