तंत्र को लेकर समाज में फैली कुरीतियाँ, अंधविश्वास और अज्ञानता एक विशेष वर्ग के लिए कष्टदायी है आयदीन ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जिसमें मानसिक रूप से कुंठित लोगों के क्रियाकलापों को तंत्र और उन्हें तांत्रिक कहा जाता है किसी बच्चे की बलि देकर कोई भी व्यक्ति तंत्र के मूल सिद्धांतो और उद्देश्यों को नहीं समझ सकता है पर अनेक जगहों पर इन लोगो को तांत्रिक कहा जाता है जिस कारण तंत्र के विषय में कई भ्रान्तियाँ न केवल समाज में फैली हैं वरण जड़ जमाए हुए है, लोग यह समझते हैं की तंत्र साधना एक निकृष्ट कार्य है ये उन लोगो द्वारा अपनाई जाती है जो केवल दूसरों को नुकसान पहुँचाना चाहते है |
तंत्र जनकल्याण हेतु भगवान् शिव द्वारा रचित एक दुर्लभ विद्या है | इसका क्षेत्र बड़ा व्यापक है | जितने भी मंत्र साधना एवं पद्धतियाँ एवं माध्यम (यंत्र) गुप्त अथवा प्रचलित हैं वे सभी तंत्र के ही अंग हैं | तंत्र एवं तांत्रिक पक्रियाओं को वैदिक मान्यता भी प्राप्त हैं और फिर यह बात निश्चित हो जाती है की जो वेदों में वर्णित है वो अशुभ तो नहीं हो सकती है | दूसरी ओर तंत्र का समस्त कार्यक्षेत्र भगवान् शिव (शिव अथवा जो कल्याणकारी है ) तथा भगवती काली (जिसका नाम सुनकर काल भी भाग खड़ा हो ) के चारों ओर घूमता है तो यह बुरा कैसे हो सकता है |
वास्तव में इसका स्वरूप विकृत हुआ कुछ मानसिक रूप से विक्षप्त लोगों के आने से जो स्वयं तो बुरी दशा को प्राप्त हुए ही आमजन का भी बुरा किया तथा कलयुग के इन अनैतिक संतानों ने हिन्दू धर्म के एक अत्यंत सुंदर एवं अलोकिक अंग को विकृत कर दिया | ये वो लोग हैं जिन्होंने तंत्र के पंचमकार (मांस, मदिरा, मतस्य, मुद्रा, मैथुन ) का प्रयोग अपनी लिप्सा की पूर्ति के लिये किया और कर्म को धर्म से अलग कर दिया |
एक सच्चा साधक पंचमकार के सही अर्थ को इस प्रकार जानता है की ब्रह्मरंध्र से सृजित अमृतधारा का नाम है सूरा इसका पान करना ही मद्यपान है | काम, क्रोध, लोभ, मोह रुपी पशुओं का विवेक रुपी तलवार से शिरोच्छेदन कर इसके मांस को ब्रह्माग्नि में पकाकर भक्षण करना विहित है |
अहंकार, दंभ, मद, मत्सर, पिशुन तथा द्वेष ये छः मत्स्य हैं इनका सेवन वाममार्ग में प्रतिपादित है | आशा, तृष्णा, जुगुप्सा, भय, घृणा, मान, लज्जा, प्रकोप आदि अष्ट मुद्राएँ हैं | मनुष्य के शरीर में इडा, पिंगला, सुषुम्ना, नामक तीन नाड़ियाँ हैं इन तीनो का मिलन ही मैथुन है | इस प्रकार से पंचमकार ही मोक्षदायी है भोग दुर्गति की ओर ले जातें हैं | किंवदंती है कि शमशान साधक प्रेतयोनि को प्राप्त होते हैं | यदि यह सत्य होता तो विश्वामित्र और वशिष्ट ब्रह्मऋषि ना न कहलाते और न गदाधर रामकृष्ण परमहंस बनते |
उपरोक्त पुज्यजन एवं कई अन्य जिन्होंने वाममार्ग का प्रयोग जनकल्याण हेतु किया वे आदरणीय हो गए | पर आजकल तंत्र तथा धर्म की अवनति देख कर बड़ा दुःख होता है | आज जिस तंत्र साधना को कुछ मुर्ख लोगों के कारण हेय दृष्टि से देखा जाता है उसका लोहा विदेशियों ने भी माना है |
रुडयार्ड किपलिंग (जंगलबुक) की जीवनगाथा से पता चलता है की कैसे महाकाली यन्त्र ने उनके प्राण बचाए | अंग्रेज विद्वान समरफील्ड ने बंगलामुखी साधना की थी तथा अपने अनुभवों की चर्चा उन्होंने अपने जीवनी में की है | इटली से आए कीरो ने तंत्र साधना की तथा ज्योतिष के क्षेत्र में नाम कमा गए |
भगवान् श्री कृष्ण ने कई विकट परिस्थितियों में अर्जुन से माँ दुर्गा की उपासना कराई | तंत्र साधनाओं के कई उपाख्यान पुराणों में भी मिलेंगे जहाँ भगवान् श्री राम हनुमान लक्ष्मण जैसे अवतारों ने तंत्र के माध्यम से भगवान् शिव एवं शिवा की साधना की और सफल हुए | पर अफसोस तो तब होता है जब तंत्र को परिभाषित करने के लिए उन लोंगों को माध्यम बनाया जाता जो भोले भाले लोंगों के अंधविश्वासों का फायदा उठाते हैं | परन्तु ये तांत्रिक नहीं है तांत्रिक वो हैं जो साधना कर सकतें हैं वो भी स्वयं पर संयम रखकर | शराब पीकर जीव की बलि देकर ब्रह्मचर्य का त्याग कर साधना नहीं हो सकती इससे सिर्फ धर्म की हानि होती है |
सत्य के प्रकाश में साधना और ब्रह्मचर्य का वही साथ है जो शिव और शिवा का है अर्थात एक के बिना दुसरे की कल्पना नहीं की जा सकती है | यह प्रमाणित है की उन अनैतिक व्यक्तियों के लिए साधना लोगों को डराने का एक जरिया है जो दो चार ग्राम्य भाषा के मंत्र सीखकर अजीबो गरीब तरीके से लोंगों को डराकर उन्हें बेवकूफ बनाते हैं |
आज आवश्यकता है की हम तंत्र और पाखंड में अंतर समझें क्योकि पाखंड से साधारण जन को केवल नुकशान ही पहुँच सकता है जबकि तंत्र की रचना भगवान् शिव ने जनकल्याण के लिए की थी आगे वेद और पुराण साक्षी हैं |
वेद और पुराणों के अनुसार उपासना विज्ञान का विस्तार – ब्रह्मउपासना
- निर्गुण उपासना
- सगुण पंचदेवोंपासना
- लीला विग्रह रुपी अवतार उपासना
- भूत प्रेतों उपासना
पंचदेवोपासना
- सूर्योपासना – जगादाकर्षक तेज़ का अवलंबन कर परमात्मा की उपासना |
- गाणपत्य उपासना – बुद्धि का अवलंबन कर परमात्मा की उपासना |
- शिवोपासना – परमात्मा की सत् सत्ता का अवलंबन कर परमात्मा की उपासना |
- विष्णु उपासना – परमात्मा की चित् सत्ता का अवलंबन कर परमात्मा की उपासना |
- शक्तिउपासना – परमात्मा की महाशक्ति का अवलंबन कर परमात्मा की उपासना |
शक्ति उपासना
दक्षिणाचार – वेद और वेद सम्मत शास्त्रों की आज्ञाओं को अक्षरंश मानकर उसके अनुशार उपासना करने को दक्षिणाचार कहते हैं | दक्षिणाचारिओं के लिए वेद, पुराण, स्मृति और तंत्र मान्य हैं | उनके अनुसार धर्मसाधन और आचारपालन ही साधारणतया विहित है |
वामाचार – वामाचार के धर्माधर्म निर्णय और आचार अनाचार निर्णय के विषय में उनकी उपास्य देवी सर्वशक्तिमयी ब्रह्मरूपा जगदम्बा ही प्रधान स्त्रोत्र मानी गई हैं | इस आचार के अनुसार श्री जगदम्बा की जो साधना की जाती है उसे यज्ञ कहते हैं जैसे की श्रीमद्भागवत गीता में अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन है | इस आचार के अनुसार श्री जगदम्बा के सत्, चित् रुपी चरणों में अर्पण करने के लिए यज्ञ किये जाते हैं |
दिव्याचार – इस आचार का तात्पर्य यह है की श्री जगदम्बा की चरणों में अनन्य श्रद्धा युक्त पराभक्ति का अधिकारी ज्ञानी भक्त ऊपर कथित दोनों आचारों में भेद बुद्धि न रखे और यह समझे की व्यक्तिगत साधना स्तर में यथायोग्य अधिकार के अनुसार कर्म करना ही श्रेष्ट है तथा सिद्धावस्था प्राप्ति के लिए सभी अवस्थाओं में चित्त की समता ही मुख्य है |