तंत्र मंत्र और यन्त्र पूर्ण रूप से विज्ञान पर आधारित है | इन तीनों के सम्मलित प्रयोग से ही कोई साधक किसी भी पदार्थ को उर्जा मैं बदल सकता है | तंत्र मंत्र और यन्त्र एक अचूक माध्यम हैं जो किसी भी परिस्थिति में अपना प्रभाव दिखाते हैं |
वर्तमान समय में तंत्र के बारे में अनेक भ्रान्तियाँ फैली हैं परन्तु उचित तथ्यों को सामने रखने पर इसमें निहित सत्यता का ज्ञान हो सकता है | इसका प्रयोग बहुत सारे दोषों के निवारण में अचूक रूप से किया जा सकता है परन्तु वर्तमान समय में इस विज्ञान के विद्वान न के बराबर हैं और जो हैं वो अप्रकट हैं |
तंत्र एक सूक्ष्म विज्ञान है जिनका मूलाधार उन पंच तत्वों पर टिका है जिन्हें हम पंचतत्व कहते हैं | सृष्टी की रचना पांच तत्वों से मिलकर हुई है | पृथ्वी अग्नि वायु जल आकाश ये पंच तत्व हैं जिससे की पृथ्वी सृष्टी चलती है | इसी प्रकार तंत्र की वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को क्रियाशील करने के लिए पांच अवयवो की आवश्यकता है तंत्र विज्ञान को जानने से पहले इन्हें जानना अनिवार्य है |
पदार्थ के बारे में हमारे ऋषि मुनियों एवं तंत्र के विद्वानों की ये अवधारणा है की ब्रह्माण्डीय उर्जा की विभिन्न धाराएं मिलकर पदार्थ की रचना करती है एक तांत्रिक सृष्टी के प्रत्येक अवयव को पूर्ण रूप से उर्जा में परिवर्तित करने की कला को भलीभांति जानता है इस सिद्धि के लिए उसे स्थान का भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है क्योकि ब्रह्माण्डीय उर्जा सृष्टी के प्रत्येक बिंदु पर केंद्रीभूत होती है |
यंत्रों का निर्माण अंक और कई रेखाओं के माध्यम से होता है | कई जगहों पर विशेष वनस्पतियों को यंत्रों के रूप में प्रयुक्त किया जाता है | यंत्रों को प्राण प्रतिष्ठा देकर उर्जा के विभिन्न स्तरों को इनपर केन्द्रित किया जाता है फिर उनकी जाग्रति शरू होती है और उन उर्जा की धाराओं का प्रयोग मनोवांछित कार्यों की पूर्ति में कर सकतें हैं |
तंत्र विज्ञान में शब्दों का सटीक उच्चारण भी आवश्यक है | यह अति रहस्यमय है | तंत्र की तकनीकों का पूरा पूरा प्रयोग करने के लिए हम यंत्रों के अलावा मंत्रो का भी प्रयोग करते हैं | मन्त्रों के लिए कहा जाता है की “मननात् त्रायते इति मंत्रः” अर्थात जिसके मनन से त्राण मिले | यह अक्षरों का एक विशिष्ट संयोग है जो उर्जा के प्रभाव को निरंतर एवं गुणवत्तापूर्ण बनाकर रख सकती है | मन्त्रों को सृष्टी का एक पवित्र विचार कह सकतें हैं जिससे असंभव संभव बनते हैं असाध्य साध्य बन जाते हैं |
तंत्र विज्ञान में विशेष साधना के लिए विशेष काल का चयन करना पड़ता है जैसे ग्रहण दीपावली अमावश्या आदि |
ये जानना ज्यादा जरुरी है की उपर ऊपर वर्णित सभी तत्वों का प्रयोग किन परिस्थियों में किया जाए | सृष्टी के आदि से अंत तक किसी विशेष रीति से प्रकृति दिशा क्षमता का जब मिलन होता है तो इस विशेष परिस्थिति में इसके विशेष प्रभाव पदार्थों पर पड़ते हैं | तंत्र मंत्र और यन्त्र के सम्मलित प्रयोग से व्यक्तित्व की कैसी भी विकृतियाँ दूर करके उसे उसके उच्चतम स्तर तक ले जा सकते हैं और उस स्तर के व्यक्तित्व के साथ हम एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना कर सकते हैं |